कविता- एक लम्हा था खुशियों से भरा | Ek Lamha khushiyon se Bhara


एक लम्हा था खुशियों से भरा

एक लम्हा था खुशियों से भरा
माँ की ममता की छांव में
गुजरा करता था हर एक पल
उनके पूजनीय पांव में

ये कैसी लहार आई जो

सब कुछ उड़ा कर ले गयी

मेरी सबसे कीमती दौलत

मुझसे चुरा कर ले गयी

प्यार जंहा बरसा करती थी

आज वंहा तन्हाई है

खुशनुमा मौसम में भी जैसे

गम की आंधी आयी है

 गीत सुहाने लगते है

 द्रस्य सुहाना लग रहा

क्या कहु मेरी माँ तुम बिन

हर सख्स बेगाना लग रहा

तुम नदियाँ सी बह गयी

जाने कान्हा किस ओर गयी

मेरी दुनिया को वीराना कर

मुझसे क्यों मुखड़ा मोड़ गयी

 

ऐसे तुम हमको छोड़ गयी

यादो से पर तुम जा ना सकीं

जब याद तुम्हारी आयी तो

हर वक्त में आँशु बहा  सकीं

तेरे अहसानो का माँ

कर्ज मै कैसे चुकाऊँगी

जो तुमने किया मेरे लिए

वो वक्त कहा से लाऊंगी

क्या तुमने मुझे पुकारा था

जब तुम दुनिया से जा रही

कितना दर्द सहा होगा

क्या याद हमारी  रही

क्या आज भी तुम हमारे साथ हो

बस एक इशारा देना माँ

अपनों कदमो की आहट बस

चुपके से सुना देना माँ

तुम जंहा भी हो शुकुन से हो

भगवान् तुम्हारे साथ हो

इस गमगीन दुनिया से दूर

कोई गम ना तुम्हारे पास हो।

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कवियत्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवियत्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवियत्री:  Saroj Bala Singh

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0 thoughts on “कविता- एक लम्हा था खुशियों से भरा | Ek Lamha khushiyon se Bhara”

  1. Ye kavita mene apni Maa (saas) ke is duniya se jane ke baad unki yaado ko dil me rakh kar likhi h
    Unhe cancer tha hamari kosiso ke bad bhi hum unhe bacha na paaye
    Wah bahot achhi thi unhone mujhe sasural me bhi myke ka sukh Diya h bas unhi ki yaad me mene ye lines likhi hu (I miss you maa)

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