प्यार पर कविता |
प्यार पर कविता – ऑनलाइन | Pyar par kavita
ऑनलाइन तुम भी थे ऑनलाइन हम भी थे,
ना तुम मैसेज कर पाए ना हम हिम्मत जुटा पाए,
तुम ताकतें रहे हमारी डीपी बड़ी खुदगर्जी से,
हम सारे दर्द तुम्हारी डीपी को देखके उसमें लुटा आए।
एक बार तो कर ली हिम्मत हमने लेकिन,
कुछ सोचकर उस मैसेज को खुद की तरह मिटा आए।
ताउम्र जोड़ी थी हमने पूंजी उम्मीदों की,
आज जोड़ी हुई उस पूंजी को भी जिंदगी से घटा आए।
कत्ल हो गया सारे ख्वाबों का पल भर में,
एक तुम्हारी डीपी पें सब ख्वाबों का हम सर कटा आए।
दिल की राहों में पत्थर खड़े किए थे हमने,
जिद्दी उम्मीदों के खातिर पत्थरों को राह से हटा आए।
कई ख्वाहिशें खड़ी हो गई हमारे सामने ही,
याद करके बीता जमाना ख्वाहिशें को हम बिठा आए।
ऑनलाइन तुम भी थे ऑनलाइन हम भी थे,
ना तुम मैसेज कर पाए ना हम हिम्मत जुटा पाए।
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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
लेखक: संजय परगाँई
नैनीताल, उत्तराखण्ड
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