मेरा प्रिय देश कविता | Mera priya desh kavita in hindi
हम भारत के वासी हैं
यहां बहती गंगा धारा है
जुग जुग जिए देश हमारा
यही हमारा नारा है
हम सब मिलजुल कर रह लेंगे
मिलजुल कर सब कुछ कर लेंगे
तुम मत समझाओ हमको कुछ
हम सब कुछ खुद मिलकर सह लेंगे
जो दोष हमारे होंगे
स्वीकार हमें एक साथ है
मत करो अलग हम लोगों को
हिन्दू मुस्लिम के फेरों में
बटवारा हिंदू मुस्लिम का
होता सत्ता के लालच में
कुर्सी पाने की लालच में
ना जाने क्या-क्या खेल रचे
तुमने पैसों के लालच में
मानेंगे ना हार तुम्हारे आगे
घुटने दोगे तुम टेक हमारे आगे
नहीं चलेगी कोई चाल
नहीं गलेगी कोई दाल
जय हिन्द ……
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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।
कवयित्री: दिव्या शुक्ला
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