हर असंभव को संभव कर लेंगे | Har asambhav sambhav he kavita


हर असंभव को संभव कर लेंगे | 

झोली छोटी है मगर 
सपने बड़े हैं 
अपनी धाक जमाने के
इरादे बड़े है
चांद पर जाकर 
कंचे खेलेंगे 
हम नए जमाने के हैं 
हमारे ख्यालात नए हैं
खाली मुट्ठी में 
आसमान भर लेंगे 
जरा दम भर ले हम
फिर सूरज को जलाकर 
खाक कर देंगे 
इस तरह हर असंभव को 
हम संभव कर लेंगे |

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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

कवयित्री: दिव्या शुक्ला

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