बाजारों का सौंदर्यीकरण निबंध | Bajaro ka saundarya karan nibandh

Bajaro ka saundarya karan nibandh
बाजारों का सौंदर्यीकरण निबंध

बाजारों का सौंदर्यीकरण निबंध

दिन भर के कामों के बाद दफ्तनिबंधरो से घर की ओर वापिस आ रहे लोग और उधर सड़को पर ट्रैफिक जाम का शोर-शराबा और उसी बीच कुछ घंटे पहले हल्की बारिश होने के बाद ठंडी-ठंडी हवाओं के बीच हमने भी चाहा कही घूम-घामकर आने का। 

हाथों में छड़ी लिए और चश्मा लगाए बस इधर-उधर देखे जा रहे कि आज कोई एक अच्छा मार्ग नज़र ही आ जाए। बाजारों पर टिकी नज़र और बाजारों में चमकदार चीजों ने तो जैसे लोगों को अपना दीवाना ही बना लिया हो। 

जहाँ-तहाँ नज़र पड़ी बस लोग फंसते हुए दिखाई दे रहे है। बाजार हर तरीको से लोगों को फंसा रहा है और उसमें साथ देने वाली चमकदार लाइटों ने तो जैसे विक्रेताओं का काम और आसान कर दिया है, और फिर क्या बस देखते ही देखते लोग उसमें खुशी-खुशी फंसते हुए नज़र आ रहे है। 

कपड़े पर डिस्काउंट का नाम सुनते ही जो चेहरे पर खुशियों की झलक आती है लोगों पर, शायद ही कभी ऐसी झलक हमारे चेहरे पर आती। 

बाज़ारो में फंसने-फंसाने का खेल थोड़ी न नया है यह तो कई सालों पुराना है। अब ऐसे माहौल के बीच फिर कभी-कभार मन में आए की बुढ़ापा की नज़र में और लोगों के नज़र में भी कोई फर्क होता हो १ लेकिन फर्क ना भी हो तो क्या फायदा। अब इस उम्र में भी चमक-धमक कपड़े थोड़ी न उम्र को कम दर्शाएगी। 

थोड़ी सैर करने के साथ इतना खूबसूरत माहौल देखकर मन किया अब घर की ओर आऊं, और अगले दिन फिर किसी और अच्छे मार्ग पर जाने का ख्याल पूरा करूँ।
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लेखिका द्वारा इस निबंध को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। लेखिका ने स्वयं माना है यह निबंध उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाया है।

लेखिका : सृष्टि मौर्य, फरीदाबाद, हरियाणा

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