गुस्सा और प्यार पर कविता। Gussa or Pyar Kavita

गुस्सा और प्यार पर कविता।


गुस्सा और प्यार पर कविता


प्यार आज कही दब सा गया है,
उन गलतफमियों के बीच,
किया करते है आज भी याद
नैनों को अपने , अँसुअन से सींच।

वो गालियाँ … वो तानें… वो अपमान,
क्यूँ करते हो ये सब,
क्यूँ हिचकते नहीं जरा भी,
क्या इससे बढता है तुम्हारा मान।

मानती हूँ गलतियाँ हैं मुझमे भी,
इंसान हूँ मैं खुदा तो नहीं?
पर तुम्हारी ही जिन्दगी का एक हिस्सा हूँ,
तुमसे जुदा तो नहीं

फिर क्यूँ दूर रहकर मुझको
तुम इतना सताते हो।
जिन्दगी के इतने अनमोल पल को,
यूँही क्यूँ तुम बिताते हो?

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कवयित्री द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवयित्री ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

रचनाकार – नाम – शुभम सुगंध

पता – आरा (भोजपुर) , बिहार
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