जलियाँवाला बाग कविता- 13 अप्रैल | Jaliyanwala bag

जलियाँवाला बाग

जलियाँवाला बाग 

हिंदुस्तान के लिए आज का दिन
बहुत खास माना जाता है
आज के दिन जलियांवाला बाग में
अंग्रेजों के साथ हिंदुस्तानियों की
जीत हुई थी और
अजीत को आज हम सब
जलियांवाला बाग के नाम से जानते हैं
क्यों ना जाने
इस जलियांवाला बाग में
किसानों ने अपनी मेहनत छोड़
कान को आजाद कराने
विद्यार्थियों को बस्ते छोड़े
जंग की पढ़ाई पढ़ी 
महिलाओं ने भी घर छोड़े
केवल अपने देश को आजाद कराने के लिए
उन्होंने अपने पति के साथ
जंग में हिस्सा लिया
जो को आगे बढ़ाया
को जारी रखने के लिए कहा
यही काम नहीं
उन महिलाओं ने
घर चूल्हा चौकी का भी काम किया
कपड़े भी साफ किए
रोटियां भी बनाई
अपने पति के लिए
और सहयोगी यों के लिए
कितना मुश्किल था
घर से बाहर जाना
पति का और अन्य
सहयोगियों का संदेशा लेना
महिलाओं को घर बैठे भी
सब पता चल जाती थी बात
कौन जंग जीत रहा है
कौन जंग हार रहा है
घर बैठे-बैठे मालूम हो
घर से निकलने का कम ही मौका मिलता है
उनके सताई में आज भी दुखी है
अंग्रेजों ने हमारी पैरों में बेड़ी डाली
गांव के हर मर्द औरत बूढ़े बच्चे
सब ने मिलकर
आजादी पाने का ऐलान किया
एक दिन हमने आजादी मिली
अंग्रेजों को खदेड़ा
और आज हम से
अंग्रेजों से आजाद हैं

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कवि द्वारा इस कविता को पूर्ण रूप से स्वयं का बताया गया है। ओर हमारे पास इसके पुक्ते रिकॉर्ड्स है। कवि ने स्वयं माना है यह कविता उन्होंने किसी ओर वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं करवाई है।

रचनाकार – खान मनजीत भावड़िया मजीद

गांव भावड तह गोहाना जिला सोनीपत हरियाणा

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